Saturday, April 19, 2014

पिता ही चलना सिखाता है, हम भूल जाते हैं

अम्‍बर बाजपेयी 

फादर्स डे पर विशेष : जून के तीसरे रविवार को मनाया जाने वाला फादर्स-डे क्या वाकई पिता-पुत्र के रिश्तों में सेतु का काम करता है? ये एक बड़ा प्रश्न है, जिसका उत्तर हम सिर्फ अपनी अंतरात्मा में झांककर ही देख सकते हैं. आज कितने ही परिवार ऐसे होंगे, जिनमें पिता-पुत्र के बीच किसी न किसी बात को लेकर विवाद चल रहा होगा. कई पिता ऐसे होंगे जो अपने बेटे से प्रताड़ित हो रहे होंगे और कई ऐसे होंगे जो बीती रात को भूखे पेट सोये होंगे. उनके लिए फादर्स-डे कितनी महत्ता रखता है, शायद इसका अंदाज़ा हम और आप नहीं लगा सकते. पत्र-पत्रिकाओं में आये दिन प्रकाशित हो रही दिल दहला देने वाली ख़बरें- 'पुत्र ने पिता को पीटा', 'संपत्ति के लालच में पिता की हत्या', या 'बेटों ने बाप को घर से निकाला' को लोग पढ़ते हैं, जाहिर है कि ये बातें उनके जेहन को झकझोरने के लिए मजबूर भी करती होंगी, लेकिन उसके वावजूद भी वे अपने आप को बदलना नहीं चाहते.

आखिर ऐसे लोग क्यों इतनी जल्दी भूल जाते हैं कि वो पिता ही है, जिसने हमे उंगली पकड़कर चलना सिखाया, अपना नाम दिया, प्यार दिया और दिया समाज में सर उठाके जीने का हक. हम ये क्यों याद नहीं रखना चाहते कि जीवन में मां के बाद पिता ही पूजनीय है, फिर भी उसके हम साथ दुर्व्यवहार करते हैं क्यों? एक पिता अपने पुत्र को जन्म देकर उनका पालन पोषण करता है कि बेटे बड़े होकर उनका सहारा बनेंगे, पर बेटे बड़े होकर उनके साथ दुश्मनों से बदतर सलूक करते हैं, क्यों? शायद किसी के पास भी इस बात का उत्तर नहीं होगा.

आज पूरा देश अमेरिकी महिला सोनारा लुई स्मार्ट द्वारा शुरू किये गया फादर्स-डे मना रहा है, वो पर्व जो पिता पुत्र के बीच बढ़ती खाई को भरने का काम कर सकता है. अगर मेरी बात ऐसे लोगों के कानों तक पहुंचे जो अपने पिता कि भावनाओं का निरादर कर रहे हैं, तो आज उनके पास अच्छा मौका है, हो सकता है फादर्स-डे उनके लिए खुदा कि नियामत बन जाये और वो रिश्ता जिसमे खटास बढ़ रही है, उसी तरह हो जाये, जैसा कि पहले था. वही पापा-पापा कहकर उनकी छाती से लग जाना और दुनिया के सारे दुखों से निजात पा लेना. हालाँकि कुछ लोग जरूर ये सोचेंगे की अब देर हो चुकी है, तो ऐसे लोगों को ये ध्यान रखना चाहिए कि एक बाप अपने बेटे की सारी गुस्ताखियाँ माफ़ कर सकता है, बशर्ते बेटे को गलती का एहसास हो. आज अच्छा मौका है, जो गलत राह पर जा रहे हैं, उनके सही रास्ते पर आने का. आइये आज फादर्स-डे के सुअवसर पर हम सभी पिता के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने और उनके सपने साकार करने की कसम खाएं यही एक पुत्र की तरफ से पिता को सच्ची शुभकामना होगी.

लेखक अम्‍बर बाजपेयी आज समाज चंडीगढ़ में उपसंपादक हैं. Sunday, 19 June 2011 16:19

स्त्रोत : भड़ास४मीडिया 

No comments:

Post a Comment